झूलेलाल सिन्धी हिन्दुओं के उपास्य देव हैं जिन्हें 'इष्ट देव' कहा जाता है। उनके उपासक उन्हें वरुण देव (जल देवता) का अवतार मानते हैं। वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिन्धी समाज भी पूजता है। उनका विश्वास है कि जल से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और जल ही जीवन है।
।। श्री झुलेलाल चालीसा ।।
।। चौपाई ।।
रतनलाल रतनाणी नंदन |
जयति देवकी सुत जग वंदन ||1|
दरियाशाह वरुण अवतारी |
जय जय लाल साईं सुखकारी ||2|
जय जय होय धर्म की भीरा |
जिन्दा पीर हरे जन पीरा ||3|
संवत दस सौ सात मंझरा |
चैत्र शुक्ल द्वितिया भगऊ वारा ||4|
ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा |
प्रभु अवतरे हरे जन कलेशा ||5|
सिन्धु वीर ठट्ठा राजधानी |
मिरखशाह नऊप अति अभिमानी ||6|
कपटी कुटिल क्रूर कूविचारी |
यवन मलिन मन अत्याचारी ||7|
धर्मान्तरण करे सब केरा |
दुखी हुए जन कष्ट घनेरा ||8|
पिटवाया हाकिम ढिंढोरा |
हो इस्लाम धर्म चाहुँओरा ||9|
सिन्धी प्रजा बहुत घबराई |
इष्ट देव को टेर लगाई ||10|
वरुण देव पूजे बहुंभाती |
बिन जल अन्न गए दिन राती ||11|
सिन्धी तीर सब दिन चालीसा |
घर घर ध्यान लगाये ईशा ||12|
गरज उठा नद सिन्धु सहसा |
चारो और उठा नव हरषा ||13|
वरुणदेव ने सुनी पुकारा |
प्रकटे वरुण मीन असवारा ||14|
दिव्य पुरुष जल ब्रह्मा स्वरुपा |
कर पुष्तक नवरूप अनूपा ||15|
हर्षित हुए सकल नर नारी |
वरुणदेव की महिमा न्यारी ||16|
जय जय कार उठी चाहुँओरा |
गई रात आने को भौंरा ||17|
मिरखशाह नऊप अत्याचारी |
नष्ट करूँगा शक्ति सारी ||18|
दूर अधर्म, हरण भू भारा |
शीघ्र नसरपुर में अवतारा ||19|
रतनराय रातनाणी आँगन |
खेलूँगा, आऊँगा शिशु बन ||20
रतनराय घर ख़ुशी आई |
झुलेलाल अवतारे सब देय बधाई ||21|
घर घर मंगल गीत सुहाए |
झुलेलाल हरन दुःख आए ||22|
मिरखशाह तक चर्चा आई |
भेजा मंत्री क्रोध अधिकाई ||23|
मंत्री ने जब बाल निहारा |
धीरज गया हृदय का सारा ||24|
देखि मंत्री साईं की लीला |
अधिक विचित्र विमोहन शीला ||25
बालक धीखा युवा सेनानी |
देखा मंत्री बुद्धि चाकरानी ||26|
योद्धा रूप दिखे भगवाना |
मंत्री हुआ विगत अभिमाना ||27|
झुलेलाल दिया आदेशा |
जा तव नऊपति कहो संदेशा ||28|
मिरखशाह नऊप तजे गुमाना |
हिन्दू मुस्लिम एक समाना ||29|
बंद करो नित्य अत्याचारा |
त्यागो धर्मान्तरण विचारा ||30|
लेकिन मिरखशाह अभिमानी |
वरुणदेव की बात न मानी ||31|
एक दिवस हो अश्व सवारा |
झुलेलाल गए दरबारा ||32|
मिरखशाह नऊप ने आज्ञा दी |
झुलेलाल बनाओ बन्दी ||33|
किया स्वरुप वरुण का धारण |
चारो और हुआ जल प्लावन ||34|
दरबारी डूबे उतराये |
नऊप के होश ठिकाने आये ||35|
नऊप तब पड़ा चरण में आई |
जय जय धन्य जय साईं ||36|
वापिस लिया नऊपति आदेशा |
दूर दूर सब जन क्लेशा ||37|
संवत दस सौ बीस मंझारी |
भाद्र शुक्ल चौदस शुभकारी ||38|
भक्तो की हर आधी व्याधि |
जल में ली जलदेव समाधि ||39|
जो जन धरे आज भी ध्याना |
उनका वरुण करे कल्याणा ||40|
|| दोहा ||
चालीसा चालीस दिन पाठ करे जो कोय |
पावे मनवांछित फल अरु जीवन सुखमय होय ||
।। श्री झुलेलाल चालीसा समाप्त ।।
ॐ जय दूलह देवा, साईं जय दूलह देवा ।
पूजा कनि था प्रेमी, सिदुक रखी सेवा ॥
ॐ जय दूलह देवा…
तुहिंजे दर दे केई, सजण अचनि सवाली ।
दान वठन सभु दिलि,सां कोन दिठुभ खाली ॥
ॐ जय दूलह देवा…
अंधड़नि खे दिनव, अखडियूँ – दुखियनि खे दारुं ।
पाए मन जूं मुरादूं, सेवक कनि थारू ॥
ॐ जय दूलह देवा…
फल फूलमेवा सब्जिऊ, पोखनि मंझि पचिन ।
तुहिजे महिर मयासा अन्न, बि आपर अपार थियनी ॥
ॐ जय दूलह देवा…
ज्योति जगे थी जगु में, लाल तुहिंजी लाली ।
अमरलाल अचु मूं वटी, हे विश्व संदा वाली ॥
ॐ जय दूलह देवा…
जगु जा जीव सभेई, पाणिअ बिन प्यास ।
जेठानंद आनंद कर, पूरन करियो आशा ॥
ॐ जय दूलह देवा…
ॐ जय दूलह देवा, साईं जय दूलह देवा ।
पूजा कनि था प्रेमी, सिदुक रखी सेवा ॥
ॐ जय दूलह देवा…
॥ इति श्री झूलेलाल आरती संपूर्णम् ॥
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