नील
सरस्वती स्तोत्रम का प्रतिदिन
पाठ करने से व्यक्ति के आत्मज्ञान
में
वृद्धि होती है। जिन
छात्रों को पढ़ाई
करने में समस्या होती है
अथवा परिश्रम करने पर भी
परीक्षा में मनोवांछित परिणाम
प्राप्त नहीं हो रहे हैं तो
उन्हें भी श्री नील सरस्वती
स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
इस
स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करने
से व्यक्ति के मस्तिष्क में
शीघ्र
निर्णयलेने
की क्षमताका विकास होता है। जो लोग कविता, साहित्य,कला
व
संगीतआदि
ललित
कलाओंके
क्षेत्र में अपना करियरबनाना
चाहते हैं
अथवा दक्षता
प्राप्त
करना चाहते हैं।
इस
स्तोत्र को सुनने से अनेक
प्रकार की मानसिक
समस्याओं का समाधान होता
है तथा शांति
का अनुभव होता है।
यदि
किसी बालक का मानसिक
विकासठीक
से नहीं हो रहा है अथवा वह अन्य
बालकों की तुलना में में मानसिक
रूप से दुर्बल
है
तो इस स्तोत्र का पाठव
श्रवणकरने
से उसका मानसिक विकास सुचारु
रूप से होने लगता है।उन्हें
श्री नील सरस्वती स्तोत्र का
पाठ प्रतिदिन पूर्ण विधि-विधान
से
करना चाहिए।सिद्ध
नील सरस्वती स्तोत्रम के
प्रभाव से साधक समस्त प्रकार
के ज्ञात व् अज्ञात भयसे
मुक्त हो जाता है।
नील सरस्वती स्तोत्र
घोर
रूपे महारावे सर्वशत्रु
भयंकरि।
भक्तेभ्यो
वरदे देवि त्राहि मां शरणा
गतम्।।१।।
ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।2।।
जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि।
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।3।।
सौम्यक्रोधधरे रूपे चण्डरूपे नमोSस्तु ते।
सृष्टिरूपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम्।।4।।
जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला।
मूढ़तां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम्।।5।।
वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नम:।
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम्।।6।।
बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे।
मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम्।।7।।
इन्द्रादिविलसदद्वन्द्ववन्दिते करुणामयि।
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम्।।8।।
अष्टभ्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां य: पठेन्नर:।
षण्मासै: सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा।।9।।
मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम्।
विद्यार्थी लभते विद्यां विद्यां तर्कव्याकरणादिकम।।10।।
इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाSन्वित:।
तस्य शत्रु: क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते।।11।।
पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये।
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशय:।।12।।
इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनिमुद्रां प्रदर्शयेत।।13।।
।।इति नीलसरस्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
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