आदित्य ह्रदय स्तोत्र परम पवित्र और सभी शत्रुओं का विनाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय तथा परम कल्याणकारी स्तोत्र है। ;g सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु का बढ़ाने वाला उत्तम साधन है। भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित हैं ,oa नित्य उदय होने वाले देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान नाम से प्रसिद्द, प्रभा का विस्तार करने वाले और संसार के स्वामी हैं । रश्मिमंते नमः, समुद्यन्ते नमः, देवासुरनमस्कृताये नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराये नमः bu ea=ks ls lw;Z दso dks ueLdkj gSA संपूर्ण देवता इन्ही के gh स्वरुप हैं । lw;Zदso अपनी तेज़ की राशि तथा किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करrs हैं ,oa अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित समस्त लोकों का पालन करrs हैं ।
भगवान सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, महेंद्र, कुबेर, काल, यम, सोम एवं वरुण आदि में भी प्रचलित हैं ये ही ब्रह्मा, विष्णु शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर , वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुदगण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रकाश के पुंज हैं ।
आदित्य, सविता, सूर्य, खग, पूषा, गभस्तिमान, सुवर्णसदृश्य, भानु, हिरण्यरेता, दिवाकर हरिदश्व, सहस्रार्चि , सप्तसप्ति, मरीचिमान, तिमिरोमंथन, शम्भू, त्वष्टा, मार्तण्डक, अंशुमान, हिरण्यगर्भ, शिशिर, तपन, अहस्कर, रवि, अग्निगर्भ, अदितिपुत्र, शंख, शिशिरनाशन व्योमनाथ, तमभेदी, ऋग, यजु और सामवेद के पारगामी, धनवृष्टि, अपाम मित्र , विंध्यवीथिप्लवंगम आतपी, मंडली, मृत्यु, पिंगल, सर्वतापन, कवि, विश्व, महातेजस्वी, रक्त, सर्वभवोद्भव . नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन, तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी और द्वादशात्मा इन सभी नामो से सूर्यदेव ! आपको नमस्कार है।
पूर्वगिरी उदयाचल तथा पश्चिमगिरी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है । ज्योतिर्गणों के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य! आपको बारम्बार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से भी प्रसिद्द हैं, आपको नमस्कार है। उग्र, वीर, और सारंग सूर्यदेव को नमस्कार है । कमलों को विकसित करने वाले प्रचंड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है। आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है । सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। lw;Zदso अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रुvks का नाश करrs हैं । आपका स्वरुप अप्रमेय है । आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।
भगवान् सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं । ये अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा करते हैं rFkk सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं । ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं। वेदों और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। संपूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं उन सबका फल देने में lw;Zदso ही पूर्ण समर्थ हैं। विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा vU; किसी भय के अवसर पर जो कोई Hkh सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता तथा tks dksbZ Hkh एकाग्रचित होकर इस आदित्यहृदय का तीन बार ikB djrk gS og ges'kk fot; dks izkIr djrk gSA
13/01/2023
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